महंत पं. मनीष शास्त्री जी
हे माहानुभाव आपको वीदित कराना चाहता हूँ कि उपरोक्त श्लोक प्रत्येक सनातन धर्मी ने अपने जीवनकाल मे अपने निवास पर ही कई बार श्रवण किया होगा क्योकि यहश्लोक श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम श्लोक है,जिसमे सस्पष्ट होता है कि नैमिषारण्य जहाँ शोन्कदित ८८ हज़ार ऋषियों ने परहित के उद्देश्य से कली के प्रभाव को ध्यान मे रखकर एक अएशे
व्रत के बारे मे जानने की जिगयसा की जिसे करने से कलयुग में भी सभी कामनाओ की प्राप्ति करके मुक्ति को प्राप्त किया जा सके जिसे सुनकर महर्षि श्री सुतजी ने श्री सत्यनारायण व्रत कथा कही जिस स्थान पर शिर सुतजी ने प्रथम श्री सत्यनारायण व्रत पूजा की वह स्थान आज भी श्री सूतगद्दी मंदिर के नाम से नैमिषारण्य मे स्थित है.स्थलीय पर श्रीमद् भागवत सहित १८ पुराणों एव ६ शास्त्रो का ज्ञान श्री सुतजी ने ८८ हज़ार ऋषि-मुनियों का तपोबल से श्रवण कराया|
कालांतर मे पृथ्वी पर पहली बार श्री व्रत सत्यनारायण पूजा करने का गौरव इसी भूमि के पास है, इस पवित्र भूमि के दर्शन के लिए विश्वभर से लोग यहा आते है परन्तु श्री सत्यनारायण व्रत कथा के उद्भव स्थल पर श्री सत्यनारायण जी का मंदिर न पाकर लोगो की आस्था पर आघात होता है| यह हम सनातन धार्मियों का दुर्भाग्य ही है कि जिस पवित्र स्थल की महत्ता समझकर लगभग २००० वर्ष पूर्व उजैन के महाराजा विक्रमादित्या जी ने पौराणिक श्री सत्यनारायण देव स्थानम नामक एक विशाल मंदिर का निर्माण किया,जो लगभग ४०० वर्ष पूर्व किन्ही धर्म विशेष के लोगों ने विध्वंसित कर डाला इस व्रतांत की प्रामाणिकता पुरतत्व सर्वेच्छण एवं जन्स्रुति पर आधारित है| अतः महर्षि श्री सूत गद्दी की प्रबंध समिति ने लोगों की आस्था को ध्यान में रखकर पौराणिक श्री सत्यनारायण देवस्थानम मंदिर पुन: बनवाने का निश्च्य किया है जिसके लिए महर्षि सुतजी पौराणिक
संस्थान को राजिस्टर्ड कराया गया है जिसका प्रथम उदेश्य इस दिव्य भूमि में भगवान श्री सत्यनारायण जी का विशाल मंदिर बनाना है चुकी यह एक एतिहासिक स्थल है, इसलिए यहाँ पर श्री सायनरान मंदिर बनाना इतिहासिक को पुनर्स्थापित करने जैसा है,एटएव इस परम सात्विक कार्य की पूर्णता के लिए आपके सुविचार एवम् सहयोग अपेछित हैं|